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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy

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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy

हे ब्रह्मदेव

हे ब्रह्मदेव

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हे ब्रह्मदेव ! तुम्हारे ब्रह्मलोक में सैकड़ों नदियां हैं 

बताओ तो ! कौन सी नदी का जल मिलाया था 

उस माटी में जिससे गढ़ा गया था मेरा हृदय 


आंखें सूज - सूजकर ढोल हो जाती हैं 

मगर जल है कि खत्म ही नहीं होता 

मैं बार बार मन को सिखाती हूं 

ना रोने की भिन्न भिन्न कलायें 


मगर मन है कि एक न. का अनाड़ी है 

सीख रहा है कराहने के सौ सौ तरीके 


मेरे लाख समझाने पर भी तोड़ देता है 

जरा सी बात पर नदी का बांध 

और बह पड़ता है जी भर 


टोकने पर बालक सा रूठ जाता है और कहता है 

तुम्हारी तरह अभिनय नहीं कर सकता 

बात छोटी नहीं है आओ देखो ! 

मुझे किस कदर घायल कर गई है 


क्या तुम सुन नहीं पा रहीं मेरे कराहने की आवाज़ ?

क्या तुम्हें महसूस नहीं हो रहा मेरी धमनियों से रिसता रक्त ?

क्या तुम्हें दिख नहीं रहा आंसुओं की नदी में डूब रहा हूं मैं ?


बांध नहीं तोड़ा तो मर जाउंगा एक दिन 

क्या जी पाओगी तुम उठाकर मेरी अर्थी ?


अपने सवालों से मुझे हर बार निशब्द करने वाला 

हर बार कर बैठता है मनमानी 


हे ब्रह्मदेव ! तुमने क्यों बनाई हृदय में ये नदी 

जीने के लिए पृथ्वी पर बनी नदियां हीं काफी थीं 


हे ब्रह्मदेव ! अपने अपने भीतर बहती इन नदियों में डूबकर 

जब मर जायें हम 

तुम नई सृष्टि बनाना बिल्कुल पहले जैसी 

बस मत भरना हमारे हृदयों में ये नदी 


हे ब्रह्मदेव ! तुम नहीं जानते कितना कठिन होता है 

इस नदी के बहाव को रोककर चेहरे पर मुस्कराहट सजाना ।

  

   


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