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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

श्रापित प्रेमी

श्रापित प्रेमी

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हम श्रापित प्रेमी थे

मिलन की रेखा उखाड़ ली गई थी

हमारी हथेलियों से 

तड़प- तड़पकर मरना 

हमारी नियति थी 


हम हर बार साथ में जन्मे

हम हर जन्म में प्रेम में पड़े 

हम हर प्रेम में जुदा हुए

हम हर जुदाई में खूब तड़पे

हम हर तड़प में खूब मरे


सदियों से यही होता रहा 

सदियों तक यही होगा 

मगर एक दिन आयेगा 


जब भभूत में लिपटा कोई सच्चा योगी 

भरेगा अपनी मुट्ठी में गंगाजल

पढ़ेगा कुछ मंत्र मन ही मन 

और फेंकेगा हमारी श्रापित रूहों पर 

देगा हमें सदा संग रहो 

सदा खुश रहो का आशीर्वाद


मैं उसी दिन के इंतजार में हूं !





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