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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy

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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy

मेरी दृष्टि में ही खोट है

मेरी दृष्टि में ही खोट है

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कोई भी पुरूष केवल पुरुष होने से महान नहीं हो जाता 

नाहीं कोई स्त्री केवल स्त्री होने से महान कहला सकती 


किसी को महान मानने के मेरे अपने नियम कायदे हैं 


मैं जब जब किसी मानव से मिलती हूं 

देखती हूं उसकी आंखें 

और आंखों में तलाशती हूं मानवता 


जिसमें जितनी अधिक मानवता

वह उतना ही अधिक महान 


धन दौलत ,जाति धर्म ,रूप रंग इन सबके कद बौने हैं 

मानवता इन सबसे बहुत बहुत बहुत ऊपर 


मानवता को अपने हृदय में सजाने वाला मानव 

प्रिय होता है ईश्वर का 


अपने इस क्षणिक जीवन में मैंने बहुत कुछ देख लिया है

 मैंने पशुओं में भी देखी है खूब मानवता 

और मानव में देखी है घनघोर पशुता 


तुम कितने ही बड़े पद पर क्यों ना हो 

सुनो ! जब भी मुझसे मिलों बस मानव बनकर मिलना 


तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं 

मैं अपने से बड़ों का खूब मान करती हूं 

मगर बड़ा केवल ईश्वर को कहती हूं 


मानवता ईश्वर के

हृदय से निकलती नदियों में से 

सबसे पवित्र नदी है 

जो दिखती नहीं बस महसूस होती है ईश्वर की तरह


हमारे गांव में एक महिला मंदिर के बाहर खड़ी 

गर्व से अपने पूर्वजों के बड़े और महान होने के

 गुणगान गा रही थीं ,कह रहीं थी -


" जा गाम में हमसे बड़ो को है हमने ईश्वर कूं बैठवे कूं जगह दई है ,

मंदिर की जे जगह कबहू हमारी हती "


मुझे उनकी अज्ञानता पर हंसी नहीं क्रोध आ रहा था 

वहीं ईश्वर अपने अबोध बालक की इस बात पर ठहाके लगाकर हंस पड़ा था 


ईश्वर का इस कदर दयालु होना मुझमें भर देता है दयालुता 

वह वहां भी मुस्करा देता है जहां आना चाहिए क्रोध 


कभी कभी सोचती हूं 


मेरी दृष्टि में ही खोट है 

संसार में जब जब कोई स्वयं को बड़ा कहकर पूजवाता है

 मुझे वो उतना ही छोटा नजर आता है 


मैं हर सुबह अपने ईश्वर से विनती करती हूं

मेरे भीतर के कवि में कविता भरी रहे या न रहे 

मगर कम न होने देना मेरे बाहर के मानव में मानवता ।

 



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