अंशुमान का टुकड़ा
अंशुमान का टुकड़ा


आंखों पर रखे थे उसने गुलमोहर
गालों पर उग आये थे गुलाब
अपनी एक मुट्ठी में ले आया था वो
चांद नहीं अंशुमान का टुकड़ा
और सजा दिया था मेरे भाल पर
दूजी मुट्ठी में न जाने क्या था ?
उसकी आंखों में देखी थीं मैंने अपनी आंखें
अपनी आंखों में देखा था उसको
मैं बस डूबती जा रही थी
और वो मुस्करा रहा था
प्रेमिका के डूबने पर मुस्कराते नहीं
हाथ बढ़ाकर बचा लेते हैं
मैं दे रही थी उसे प्रेम ज्ञान
प्रेमी की आंखों में जितना डूबती है
उतना बच जाती है प्रेमिका
वो हौले से बोल गया था कान में
जैसे ही अपनी उंगलियों से लिखा था उसने
अपना नाम मेरी पीठ पर
दौड़ पड़ी थी असंख्
य सफेद मछलियां
और वक्त वहीं ठहर गया था
मैं मछलियों की पीठ पर आज तक
लिख रही हूं उसका नाम
गुलमोहर आज भी सजे हैं
मेरी पलकों के गुलशन में
गुलाब आज भी खिले हैं
मेरे गालों पर
और अंशुमान का टुकड़ा
आज भी दिख रहा है उतना ही दिव्य
उसकी चमक में इतना तेज है
कि बंद आंखों से भी मैं देख पा रही हूं
घूमती हुई ये पृथ्वी
ठहरा हुआ वो लम्हा
और बंद हुई वो मुट्ठी
मैं जानती हूं मृत्यु निश्चित ही आयेगी
मगर मुझे यकीन है उसके आने से पहले
मुट्ठी खुल जायेगी
और दौड़ पड़ेगा वो ठहरा हुआ लम्हा ।