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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Classics Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Classics Inspirational

धाक से अपनी सत्ता जमाते पुरूष हमारे असली शत्रु नहीं थे

धाक से अपनी सत्ता जमाते पुरूष हमारे असली शत्रु नहीं थे

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धाक से अपनी सत्ता जमाते पुरूष 

हमारे असली शत्रु नहीं थे 

हमारी असली बैरन थीं

उस सत्ता को पोषित करने वाली स्त्रियां 


पितृसत्ता का जामा पहने पुरूष 

उतने जख्म नहीं दे पाये 

जितना जख्मी करती रहीं 

उस जामे को चमकाने वाली स्त्रियां


हमारे जख्मों को जूतों से मसलने वाले पुरूष 

यकीनन दोषी थे 

मगर उनसे ज्यादा दोषी थीं 

जख्मों में नमक रगड़ने वाली स्त्रियां


हमारा गला दबाने वाले पुरूष 

भले ही बुरे थे 

मगर बहुत बहुत बुरी थीं 

मुंह में चुप्पी ठूंस देने वाली स्त्रियां


पितृसत्ता की जडो़ को खींचना 

इतना भी दुष्कर न होता 

अगर हाथ थाम लेतीं 

हमारी टांगें तोड़ देने वाली स्त्रियां।


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