STORYMIRROR

सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

4  

सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Fantasy

उदास बैठी हैं गिलहरियां

उदास बैठी हैं गिलहरियां

2 mins
382


प्रेम अपनी बाहें फैलाए समक्ष खड़ा था 

मैं दौड़ कर समा जाना चाहती थी उसमें 

मगर उसकी बाजुओं में कांटे लगे थे 

मैं जान गई थी निश्चित ही लहूलुहान होकर लौटूंगी 

या फिर कभी लौट ही नहीं पाऊंगी 


प्रेम सदियों से पुकार रहा था मेरा नाम 

ठीक वैसे जैसे कोई योगी भज रहा हो ईश का भजन

उसकी लाख अनुनय विनय पर भी निर्मोही बनी मैं 

बस देख रही थी उसे बहुत दूर से 


हमारे बीच में बन गया था आठवां समंदर 

जिसकी खबर अभी तक जमाने को नहीं थी 

और वो कैसे बना उसकी खबर मुझको भी नहीं थी 

उस समंदर के पानी में सात नहीं बहते थे आठ रंग 


उस समंदर में बहने वाली स्वर्णिम मछलियों की 

छोटी छोटी आंखों से पानी नहीं , बहता था रंग

 शायद वही आठवां रंग 

जिसकी जमाने को अब तक खबर नहीं थी 


मैं बार बार उस समंदर के पानी में रखती पैर 

और बार बार वापस कर लेती 

मुझे डर था मैं गई तो लौट नहीं पाऊंगी 

जबकि मेरा लौटना उतना ही जरूरी था 

जितना प्राणायाम में श्वास के छूट जाने पर वापस लौटना 


प्रेम जब जब रो

पड़ता मेरी निष्ठुरता पर 

तब तब बढ़ जाता इस आठवें समंदर का पानी 

मैं बहुत दूर खड़ी होती फिर भी छू जाता मुझे 

उसके छूने भर से मेरी नाभि में उग आते पलाश के फूल 

मेरी धड़कनों से निकल पड़ता आठवां स्वर 

मेरी आंखों में नृत्य करने लगते असंख्य जुगनू 

और चहुं ओर दौड़ पड़ती रंग बिरंगी तितलियां 


प्रेम तक ना पहुंच पाने की मेरी बेबसी पर 

तरस खाकर उदास बैठी हैं गिलहरियां 

गिलहरियों का उदास होना बिल्कुल भी ठीक नहीं

मैं जानती हूं मगर मैं अभी कुछ नहीं कर सकती 


आठवें समंदर के पार खड़े मेरे उस प्रेमी को 

अभी एकाध जन्म और करनी होगी तपस्या 

मैं जाऊंगी एक दिन उसके पास कभी न लौटने के लिए 

निकालूंगी अपनी पलकों से उसकी बाजुओं से कांटे 

रख दूंगी उसके घावों पर अपने दो गुलाबी फूल 

और सुनूंगी उसके सीने में बज रहे सितार से निकला नाद 


मैं जानती हूं !

उस दिन नाच उठेंगी ये उदास गिलहरियां 

और जमाना जान जायेगा प्रेमियों की अजब दुनिया में 

होता है 

आठवां सागर, आठवां रंग और आठवां स्वर भी ।


 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract