जब जाती हूँ थक
जब जाती हूँ थक
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जब जाती हूं थक...
तो निकल जाती हूं घर से बाहर
तेरी ऊँगली पकड़ एक लंबे सफ़र पे
बताती हूं तुझको हर एक छोटी और बड़ी बात
हर एक बात से करवाती हूं तुझको रूबरू
कैसे की दिन की शुरुआत
क्या-क्या हुआ मेरे साथ
कब हंसी कब रोई
कब किया तेरा इंतजार
खाया खाना कब और कब रही भूखी
सब बताती हूँ तुझे
सुबह से ले कर शाम तक की
और हा यह भी धीमी और हौले से बताती हूँ
कि कब खाते-खाते आंखों में आ गए आंसू
और रोते रोते कब लगी हंसने
तू बड़े इत्मिनान से सुनता है मेरी बातें
मेरी आंखों में आंखें डाले
मुझे यूं ही निहारता देखता मुस्कुराता
और समझने की करता है कोशिश
किसी जल्दबाजी में नहीं होता है तू उस वक़्त,
सुनते सुनते.....
ऊँगली को कस के पकड़
चलता रहता है मेरे संग संग
कहीं मुझे चोट ना लग जाए
कस के थम लेता है मेरा हाथ
कहीं भटक न जाऊं
किसी राह अ
न जानी पे
इसलिए नहीं छोड़ता है मेरा हाथ,
फ़िर थोड़ा रुक कर....
मुझे बिठा देता है
पड़ी एक बैंच पे
और बैठे-बैठे बोलता है
हंसती हो तो अच्छी लगती हो
और सुनो...
जो तुम्हारी आंखों की चंचलता है ना
वो मुझे जीने की हर रोज़
नई उम्मीद दे जाती है,
बातें करती हो जब भी तुम
और सुनाती हो हर छोटी बड़ी बात
तो लगता है जैसे तुम नहीं
मैं ही कर रहा हूँ
तुम्हारी आवाज़ में बातें,
सुन उसकी बात
हंसने लगती हूं मैं
जोर-जोर ठहाके मार
और तभी हो जाती है
पलके बंद .......,,,,,
जब खोलती हूँ पलके
और देखती हूँ आस पास
कोई नहीं है...
फ़िर किस से कर रही थी
इतनी लम्बी बात...
और तभी आँखों में आ जाता है
आँसुओं का सैलाब...
और फ़िर पलट पड़ती हूँ
वापस बिना ऊँगली थामे...!!