तुम हर मौसम यहाँ आया करो
तुम हर मौसम यहाँ आया करो
तुम हर मौसम यहाँ आया करो,
हर मौसम का मिज़ाज़ अलग होता है।
और जब भी यहाँ आया करो,
बस कुछ देर यहाँ बैठ जाया करो,
जब बैठो यहाँ,तो कुछ बातें भूल जाया करो,
शहर की वो परेशानी भारी नौकरी,
शहर की वो बेवजह की भागदौड़,
शहर के वो मतलबी लोग,
शहर का वो घुटते मकान,
शहर के वो खोकले दिखावे,
शहर की वो त्रस्त करता कोलाहल,
शहर की हर याद को, शहर में ही छोड़ आया करो।
अब बैठो हो यहाँ, सब खाली करके आया करो,
तभी महसूस कर पाओगे तुम,
वक़्त के हर खोये पल को,
तभी सुन पाओगे तुम,
इस दिल की आवाज़ को।
अब जब सुनोगे ये धड़कन, तब ना घबराया करो,
ये तुम में है शामिल हर क्षण, बस इसे सुनते जाया करो,
देखो इस मोरी के पानी को,
इसमें घुलते सूरज के सिन्दूरी रंग को,
मंद मंद समाते इस सौहार्द को,
अपनी इन बैचैन आँखों में बसाया करो,
फिर देखो कैसा नज़ारा तुम हर मौसम यहाँ आया करो,
हर मौसम का मिज़ाज़ अलग होता है।
और जब भी यहाँ आया करो,
बस कुछ देर यहाँ बैठ जाया करो,
जब बैठो यहाँ,तो कुछ बातें भूल जाया करो,
शहर की वो परेशानी भारी नौकरी,
शहर की वो बेवजह की भागदौड़,
शहर के वो मतलबी लोग,
शहर का वो घुटते मकान,
शहर के वो खोकले दिखावे,
शहर की वो त्रस्त करता कोलाहल,
शहर की हर याद को, शहर में ही छोड़ आया करो।
अब बैठो हो यहाँ, सब खाली करके आया करो,
तभी महसूस कर पाओगे तुम,
वक़्त के हर खोये पल को,
तभी सुन पाओगे तुम,
इस दिल की आवाज़ को।
अब जब सुनोगे ये धड़कन, तब ना घबराया करो,
ये तुम में है शामिल हर क्षण, बस इसे सुनते जाया करो।
देखो गौर से इस मोरी के पानी को,
इसमें घुलते सूरज के सिन्दूरी रंग को,
मंद मंद समाते इस सौहार्द को,
इसे अपनी इन बेचैन आँखों में बसाया करो।
देखो इस निश्छल नीले नभ को,
इसके रंग की असीम सच्चाई को,
इसे अपना ज़मीर में समाया करो।
जब सोचो की मैं यहाँ क्यों हूँ,
तो रुक जाया करो,
तुम तर्क ना करा करो,
ना कोई शंका या सवाल,
ये पावन प्रेम है,
कोई व्यापार या सौदा नहीं,
बस इसे यूँही जीते जाया करो।
तो अब मानोगे मेरी ये बात,
तुम हर मौसम यहाँ आया करो,
हर मौसम का मिज़ाज़ अलग होता है,
मगर होता वो प्रेम ही है।
इस प्रेम को बस यूँही जीते जाया करो,
जीते जाया करो,
जीते जाया करो।
प्रदीप्ति
तुम हर मौसम यहाँ आया करो,
हर मौसम का मिज़ाज़ अलग होता है।
और जब भी यहाँ आया करो,
बस कुछ देर यहाँ बैठ जाया करो,
जब बैठो यहाँ,तो कुछ बातें भूल जाया करो,
शहर की वो परेशानी भरी नौकरी,
शहर की वो बेवजह की भागदौड़,
शहर के वो मतलबी लोग,
शहर के वो घुटते मकान,
शहर के वो खोकले दिखावे,
शहर का वो त्रस्त करता कोलाहल,
शहर की हर याद को, शहर में ही छोड़ आया करो।
अब बैठो हो यहाँ, सब खाली करके आया करो,
तभी महसूस कर पाओगे तुम,
वक़्त के हर खोये पल को,
तभी सुन पाओगे तुम,
इस दिल की आवाज़ को।
अब जब सुनोगे ये धड़कन, तब ना घबराया करो,
ये तुम में है शामिल हर क्षण, बस इसे सुनते जाया करो,
देखो इस मोरी के पानी को,
इसमें घुलते सूरज के सिन्दूरी रंग को,
मंद मंद समाते इस सौहार्द को,
अपनी इन बैचैन आँखों में बसाया करो।
देखो इस निश्छल नीले नभ को,
इसके रंग की असीम सच्चाई को,
इसे अपना ज़मीर में समाया करो।
जब सोचो की मैं यहाँ क्यों हूँ,
तो रुक जाया करो,
तुम तर्क ना करा करो,
ना कोई शंका या सवाल,
ये पावन प्रेम है,
कोई व्यापार या सौदा नहीं,
बस इसे यूँही जीते जाया करो।
तो अब मानोगे मेरी ये बात,
तुम हर मौसम यहाँ आया करो,
हर मौसम का मिज़ाज़ अलग होता है,
मगर होता वो प्रेम ही है।
इस प्रेम को बस यूँही जीते जाया करो,
जीते जाया करो,
जीते जाया करो।