इन्साफ
इन्साफ
कुछ ऐसा सूरत -ए -हाल है इंसाफ़ का,
सच के पैरों में बावाईयाँ पड़ गई,
दलीले, सवालातों के काँटों पर चलकर,
और, कटघरे में गुनहगार की तरह खड़े होकर।
और झूठ की ऑंखें चमक रही हैँ,
अहम से, ज़िश्त मुस्कान लिए,
क़ाज़ी बनकर,
साज़ बाज़ करते हुए,
हर फैसले को इस कद्र।