एक प्रेम ऐसा भी
एक प्रेम ऐसा भी
जब देखा उस ओस की बूँद को,
खूबसूरती से अपना आकार खोते हुए,
उस पत्ते पर,
और धीरे धीरे अपना वजूद खोते हुए,
पत्ते को मृदु चमक देकर।
कैसा बलिदानी प्रेम है ये,
जो एक क्षणिक समर्पण से,
चिरकाल के लिए,
गौरवान्वित कर दे,
अपने प्रेमी को।