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Pradeepti Sharma

Others

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Pradeepti Sharma

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वक़्त

वक़्त

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वक़्त पानी सा बहता गया,

जीवन की नाव चलती गयी,

कई छोर छूटते गए,

किनारे भी धुंधले होते गए,

और अब ये मंज़र है,

कि गहराई रास आने लगी है,

अब ना किसी छोर की तमन्ना,

ना ही किसी किनारे की आस बची है


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