वक़्त
वक़्त
1 min
78
वक़्त पानी सा बहता गया,
जीवन की नाव चलती गयी,
कई छोर छूटते गए,
किनारे भी धुंधले होते गए,
और अब ये मंज़र है,
कि गहराई रास आने लगी है,
अब ना किसी छोर की तमन्ना,
ना ही किसी किनारे की आस बची है।