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Pradeepti Sharma

Abstract Fantasy Inspirational

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Pradeepti Sharma

Abstract Fantasy Inspirational

इंदुकला

इंदुकला

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ये मन ही तो है-

शीतल भी,

उग्र भी,

कभी शाँत,

कभी चँचल,

ठहराव लिए कभी,

कभी गतिशील भी,


कभी उदासीन,

कभी उल्हास पूर्ण,

कुछ वक़्त छिपा हुआ,

अपने ही ख्यालों में,

ढूंढ़ता हुआ उत्तर,

अनकहे सवालों के,

तिमिर में शोध करता हुआ-


अस्तित्व की,

व्यक्तित्व की,

सत्य की,

मिथ्या की,

प्रत्यक्ष की,

परोक्ष की,

हर भाव की,

भावहीनता की,

शून्यता का आभास,

करते हुए।


फिर धीरे धीरे,

उभरने के लिए,

एक नूतन प्रकाश लिए,

हर सवाल के उत्तर के साथ,

पूर्णता को उजागर करते हुए।


मगर ये मन

काल चक्र से बद्ध है

वो यूँही चरणों में जिएगा,

शून्य से पूर्ण तक,

पूर्ण से फिर शून्य तक,

हर चरण में एक छवि लिए,

इंदुकला की तरह।


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