अपनी जगह ढूंढ रही हूँ मैं...। अपनी जगह ढूंढ रही हूँ मैं...।
कुछ बदलाव - सा...। कुछ बदलाव - सा...।
पता नहीं क्या कहना चाहता है हाँ , खाली कमरा शोर बहुत मचाता है! पता नहीं क्या कहना चाहता है हाँ , खाली कमरा शोर बहुत मचाता है!
भूल मत पर रात तो खुद एक टीका है, वो चाँद ही है जिसे लगता है ग्रहण...! भूल मत पर रात तो खुद एक टीका है, वो चाँद ही है जिसे लगता है ग्रहण...!
नज़र मिलाने और चुराने से शुरु होने वाले प्यार को बंया करती है ये कविता नज़र मिलाने और चुराने से शुरु होने वाले प्यार को बंया करती है ये कविता
सोचे जो नयी नज़र से, वो हमें ख्याल नहीं मिलते...! सोचे जो नयी नज़र से, वो हमें ख्याल नहीं मिलते...!