एक छोटा सा उपहार
एक छोटा सा उपहार
प्रीत की जब से डोर बाँधी,
हृदय कमल आसन तुम्हारा हो गया।
मंत्र सरीखे अब हैं भाव सारे.......
साँसो की मनका से सुमिरन तुम्हारा हो गया।
ये चक्षुओं के दीप पावन हो गए हैं...
नेहा का रिमझिम सावन तुम्हारा हो गया।
इश्क में मैं तो दीवानी हो गई......
दिल का खिला मधुबन तुम्हारा हो गया।
तू वो पारस है जिसे छूकर मेरे सपने सुनहरे हो गए
गम दूर है अब, खुशियों का उपवन तुम्हारा हो गया।
नेहपूरित दो नयन उद्गम गंगोत्री के
नज़रें झुकायी तो वंदन तुम्हारा हो गया।
सात फेरे कम बहुत है.....
जिंदगी का हर पग तुम्हें मैं अर्पित करना चाहती हूँ।
सात वचन अब कौन बांधे......
हर वचन मैं तुम्हें समर्पि
त करना चाहती हूँ।
तेरे हृदय गगन में रहूँ उदित......
तुझ में ही खुद को विसर्जित करना चाहती हूँ।
गीत गजलों में तुम्हें लिखूँ मैं......
लोग समझते कि खुद को चर्चित करना चाहती हूँ।
मीरा सी मैं विष कटोरे में......
सुधा रस भरना चाहती हूँ
अनगिनत रोज मैं ख्वाब बुनती हूँ
मेहंदी से तेरा ही नाम लिखती हूँ।
प्रीत का पावन महावर, थाल भरकर
मैं दुल्हनों सी पाँव धरना चाहती हूँ
धड़कनों की इकतारा बस तेरा ही नाम बोले,
अपनी हर खुशी मैं तेरे नाम करना चाहती हूँ।
गोपियों सी तड़पना चाहती हूँ....
राधा सी मचलना चाहती हूँ
सत्यभामा का नहीं है दर्प मुझ में..
मैं रुक्मिणी से हार जाना चाहती हूँ।