कागज़
कागज़
मन के कागज़ की कुछ हिस्से पर
दर्द की स्याही ने लिखी है कुछ नज्में।
कुछ हिस्से पर ,वक्त के तजुर्बे ने उकेरी है
आड़ी तिरछी रेखाओं से कोई चित्र।
एक कोने में दुबकी ख़ुशी ने भी
एक शब्द लिखा... अभिलाषा
और फिर अभिलाषा लिखती गई...
उनींदी , बेचैनिया, उलझनें ,आंसू...
मन के कागज़ का कुछ हिस्सा
आज भी खाली और अनछुआ है।
जिस पर बनाना चाहती हूं
मोर के सतरंगी पंखो सा एक चित्र।
खाली हिस्से पर मैं लिखना चाहती हूं
तुम्हारे लिए एक गीत।
जिसकी हरएक पंक्तियों में
हम तुम और एक हसीन दुनिया हो
मेरे सपनों के रंगों का वसंत हो,
खिला पलाश वन हो...
टपकते महुए के फूल हो
जूडें में सजी
सखुआ फूलों के गुच्छे हो,
मांदर पर पड़ती थाप हो
थिरकने को आतुर पांव हो,
खुशी में डूबी सुबहो शाम हो।