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Dippriya Mishra

Abstract Tragedy

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Dippriya Mishra

Abstract Tragedy

आंखें

आंखें

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उसकी आंखों को क्या लिखूं?

उसकी आंखों में न समंदर है ,

न दरिया ,न झील है........।

न ख्वाबों के शिकारे हैं ,

न उम्मीदों के दीपों के घेरे हैं।

न मछलियों सी चंचल ,

न मृग सी चपल हैं।

उसकी आंखों को क्या लिखूं?

उसकी उदासीन आंखों में...

मृत स्वप्नों की जलती चिताएं हैं।

विफलताओं की ज्वालाएं हैं...।

बेबसी, शून्यता है और

जमी हिम जल धाराएं हैं। 

पथराई सी आंखों में

टूटे रिश्तो के शीशे हैं

प्रीत के कुछ घट रीते हैं

दुख दर्द की सिलवटें

आंसू के मोती पिरोते हैं।

उसकी आंखों को क्या लिखूं?

उसकी आंखों को देना है...

भोलेपन से मुस्कुराने की अदाएं

खिंजा कब तक रहे?

मिले उसको भी राहों में बहारें..

चांद सा दमके चेहरा आंखें में हों सितारे

उसकी आंखों को क्या लिखूं?



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