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Dippriya Mishra

Abstract Romance

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Dippriya Mishra

Abstract Romance

तुमको पा कर

तुमको पा कर

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श्रीराम सरीखा तुमको पा कर, सब भाव हमारे वंदन हो गए।

पर्वत -पर्वत पारस क्यों ढूंढे, एक छुअन से ही कुंदन हो गए।


झूमती गाती चली पुरवाई, घिर -घिर आए श्याम सलोने बदरा,

प्रेम सुधारस इतना बरसा, व्यथाओं के दावानल चंदन हो गए।


जिसको पाने को हुई आकुल- व्याकुल हृदय अर्णव की लहरें 

उदित पूर्णमासी के वो चंद्र लगे तुम, रत्नाकर में स्पंदन हो गए।


होली के हैं हर रंग तुम्हीं से, तुम ही से हुआ ये सिंगार सलोना,

हर रंग सुमन का घुला तुम्हीं में ज्यों वृंदावन के कुंजन हो गए।


इन कमल नयनों की , मनमोहक हर  अदा  लगी चितचोर,

मन मंदिर के मनमोहन तुम हो, मेरे पूर्ण सभी निवेदन हो गए।


आम्र मंजरियों से लद डाली, कुक रही कोयलिया मतवाली,

कानन -कानन महके  हैं टेसू, पतझड़ के दूर क्रंदन हो गए।


ग़म के अंधियारे दूर हुए, अब अरुणोदय का है सोना बिखरा,

दीप प्रज्वलित हुआ नेह का, नज़रों से ही अभिनंदन हो गए।

 


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