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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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आकाश का सूनापन

आकाश का सूनापन

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आकाश का सूनापन देखो आकाश को ही ना भाता है।

प्यार लुटाने वाला ही जग में आकाश कहा जाता है।


अब धरती की ये उथल पुथल धरती को विचलित करती है।

धरती से देखो तो भाई धरती ही अब तो डरती है।

आकाश बड़ा है बहुत मगर धरती के गर्भ से नाता है।...

आकाश का सूनापन देखो आकाश को ही ना भाता है।....


पाताल को किसने देखा है पाताल की बाते करते हो।

धरती के गरभ इतिहास मगर भूगोल की बाते करते हो।

इतिहास लड़ाई करता है भूगोल बिगड़ता जाता है।

आकाश का सूनापन देखो आकाश को ही ना भाता है।


व्योम और धरती का रिश्ता सदा सदा से जुडा हुआ।

प्यार और त्याग की अविरल गतियों से है जुड़ा हुआ।

सूरज का आक्रोश जिसे पल पल विचलित करता है।

शाम को चंदा जिसकी सूनी गोदी को आ भरता है।

धरती से प्यार का सूनापन कोई नहीं भर पाता है।....

आकाश का सूनापन देखो आकाश को ही ना भाता है।....


आकाश चाहता मिलना पर, दूरी ना मिलने देती है।

ग्रहो को जोड़े रखने की, मजबूरी न मिलने देती है।

दोनों ही त्याग की मूरत है,हमको बस प्यार सिखाते हैं।

औरों के लिए जीना क्या है हमको बस यार बताते हैं।

धरती और आकाश का ना मिलन कभी हो पाता है।....

आकाश का सूनापन देखो आकाश को ही ना भाता है।...


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