मेरी कविता
मेरी कविता
मेरी कविता किसी शिशु की तरह
चाह करती है मेरा स्नेह और ध्यान
क़भी मचलती हैं मेरे अंतस में फिर
खेलने के लिए तब मेरे शब्दों के संग
क़भी मुश्किल हो जाता है मेरे लिए
इसकी निश्छल चंचलता को रोक पाना
तो क़भी मन के विकारों से दूर रखना
तो क़भी इसके साथ सपनों की सैर करना
मुझसे ही जन्मी यह कविता जब कभी
मुस्कुराते हुए बुलाती हैं मुझे अपने पास
तो मेरे पास जाते ही करती है शरारतें
छुप जाती है यही कही शब्दों को लेकर
जब थक जाती हूँ मैं उसे ढूँढते हुए
तो आकर बैठ जाती हैं मेरी गोद में
दे जाती है मुझे शब्द और मेरी कल्पना
का अविरल रूप बन जाती है।