मोहब्बत का दायरा
मोहब्बत का दायरा


मोहब्बत का दायरा अब सिमटने न दो।
तन्हाई के ये हसीं पल यूँ गुजरने न दो।
मिल जाए इश्क़ को आख़िरी मुक़ाम,
शरारत हवाओं को आज करने न दो।
परवाने जल रहे हैं जो बुझती है शमा,
आज फिर फ़ासले दरमियान होने न दो।
बंद आँखों में कैद किया जो मैंने तुम्हें,
अश्कों को तुम ज़मीं पर बिखरने न दो।
हो जाऊँ मदहोश जो आऊँ तेरे रूबरू,
ज़िंदगी भर मुझको होश में आने न दो।
हर शह से लड़ जाऊँ तुम ग़र साथ हो,
मेरे क़दमों को तुम बस फिसलने न दो।
लाख तदबीर करें किस्मत आजमाने की,
मुझको खुद से कभी भी दूर जाने न दो।
नूमुदार हुआ है जो एतबार-ए-मोहब्बत,
होकर दूर हमसे अब उसको मिटने न दो।