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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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ज़िंदगी

ज़िंदगी

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रुकी हुई सी ज़िंदगी उदास लग रही है।

हालात बदलने का इंतजार कर रही है।

जिसे बर्दाश्त नहीं जरा सा भी ठहरना,

बचाने के लिए वजूद अब ठहर रही है।


तैयार हो रही है फिर बढ़ने को ज़िंदगी,

एक हौसला अपने साथ ले चल रही है।

समेटकर बिखरे हुए लम्हें ख़ुशियों भरे,

तेरे आगे बढ़ने का इंतजाम कर रही है।


चल पड़ी ज़िंदगी एक नए रास्ते की ओर,

मंज़िल से भी पहले ही उड़ान भर रही है।

देखकर ये नज़ारे अजब गजब दुनिया के,

अपने नाम पर ये सारा जहाँ कर रही है।


ज़िंदगी के रंग भी पल-पल बदल रहे है,

ख़्वाहिशें दिल में कुछ शोर कर रही है।

जैसी भी है ज़िंदगी हमको पसंद है ये,

साँसों के साथ ये भी सफर कर रही हैं।


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