सौगात
सौगात


ख़ुशियों की सौगात जो मिली तुम बिन अधूरी
रह गई आँखें नम मिरी आ गई दिलों में ये दूरी
हाथ से फिसल रहा है आज वक़्त रेत की तरह
ठहर गए जो क़दम तेरे हो गई है क्या मज़बूरी
रोशन हुई है शब आज आसमान सज रहा है
चाँद अपने महताब से फ़लक़ पर चमक रहा है
बस तुम ही तो नहीं करीब मेरे इस तन्हाई में
उदासियों की आग में बेखबर दिल जल रहा है
ख़ुशियों की सौगात लेकर लौट आओ तुम
मिरी ज़िंदगी मे उम्मीद के रंग भर जाओ तुम
कर लो एक नई शुरुआत मरासिम-ए-इश्क़ की
कलीसा-ए-खुदा में इबादत का जश्न मनाओ तुम.