सोलमेट
सोलमेट


तुम नहीं कहते
पर मैं सुन लेती हूँ !
कभी तुम्हारी आॅंखों में तो कभी
तुम्हारी नाराजगी में
कभी तुम्हारे गुस्से में तो कभी
हमारे बीच हुए झगड़े में
कभी जीवन की कठिन परेशानियों में
तो कभी थक कर चुर हुए रहते हो तुम फिर भी
मेरे लिए उठा रही जिम्मेदारीयों में
तुम नहीं कहते
पर मैं सुन लेती हूँ
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!
यूँ तो तुम बहुत रौब दिखाते हो
ज्यों ही आ जाए भावनाओं की बात तो
तुम पुरूष बन जाते हो!
पर देख मेरे चेहरे की परेशानियों को
तुम मोम से पिघल जाते हो!
जब काम कर मैं थक जाती हूँ तुम गुस्सा दिखाते हो
क्या जरूरत थी इतना करने की
फटकार लगाते हो!
सबके सामने तानते हो छत्तीस इंच का सीना
फिर दरवाज़ा लगा मेरा सर और पैर दबाते हो!
तब भी तुम नहीं बोलते मिठे बोल
मेरे बार बार मना करने पर भी
तुम कभी मेरा सर दबाते हो तो कभी ज्यादा तकलीफ
होने पर दवा खिलाते हो!
आॅंखें तरेर मुझे सब चिंताओं से मुक्त कर
अपनी गोद में सुलाते हो!
हाँ, तब भी तुम कुछ नहीं कहते
पर तुम्हारी गोद में मुझे बेफिक्र कर
तुम्हारी मौन फिक्र में मैं सुन लेती हूँ कि
तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!
कुछ अधूरे थे सपने मेरे
जिनको पूरा करना इतना आसान नहीं था!
पर तुम हर वक्त मेरा साथ निभाते हो
यूँ तो झगड़ते हो हर वक्त तुम मुझसे
पर जब भी उठाता है कोई
मुझपर ऊँगली तुम एक एक से बेखौफ़ लड़ जाते हो!
तुम मुझे आजादी भी देते हो
और मेरी हद भी बताते हो
मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ
मुझपर पूरा हक जमाते वक्त जतलाते है!
डरपोक हूँ थोड़ी मैं
इसलिए हमेशा मुश्किलों के आगे खड़े हो जाते हो!
जब पूछती हूँ मैं
कि क्या दूँ मैं जबाब
लोगों के उल्टे सीधे सवालो का
तब तुम करके मुझे चुप
सबको मेरी खूबियाँ गिनाते हो!
जरूरत पड़ने पर तुम हीरो से विलेन भी बन जाते हो!
गलती भले मेरी हो, इलजाम साबित होते ही
जब आती है सजा की बारी
सबको झुठलाकर इलजाम खुद पर लेकर
गुनाहगार खुद को बताते हो!
मैं बेखौफ़ जी सकू इसलिए
हर बार मेरे लिए तुम ढाल बन जाते हो
इतना सब करने के बाद भी
तुम कुछ नहीं बोलते
पर मैं सुन लेती हूँ
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!
बच्चों की तरह
निकालते हो खाने में सौ नुक्स
फिर मेरे आंख दिखाने पर
खाना पूरा चट कर जाते हो!
कितनी भी हो भूख तुम्हें पर खाने में से एक निवाला
जरूर खिलाते हो!
पैसों की जब होती है जरूरत
पाइ पाइ गिनकर मुझे थमाते हो
फिर तिजोरी और घर की चाबियों का गुच्छा
मुझी को थमाते हो!
उस वक्त भी कुछ नहीं कहते तुम
पर उन चाबियों की छनछनाहट में मैं सुन लेती हूँ
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!
हां बहुत बुरे हो तुम
कभी भी मुझे बांहों में घेर
नहीं कहते हो जान न ही जानू
न देते हो गुलाब न ही तोहफा
पर मेरी हर ख्वाहिश पूरी कर जाते हो!
सिर्फ मेरी एक मुस्कान के लिए जान लुटाते हो!!
बहुत बुरा लगता है मुझे जब किसी
और का गुस्सा मुझपर निकालते हो
मगर जब डांटते हो तुम मुझे
तो मेरे उदास चेहरे को देख
खुद ही बिमार पड़ जाते हो
तुम कभी पिता तो कभी माँ तो कभी भाई तो कभी
बहन जैसे बन जाते हो
मगर तुम कभी नहीं बनते मेरे दोस्त
पर ढ़ाल सदैव बन जाते हो
इन ढेर सारी जिम्मेदारियों के बीच
तुम नहीं बोलते कभी
पर मैं सुन लेती हूँ
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!
बहुत सी ख्वाहिश की है तुमने पूरी
पर एक ख्वाहिश अब भी है अधूरी
सुनो न, तुम भूल जाओ कि तुम मेरे पति हो
कुछ पलों के लिए बन जाओ न मेरे प्रेमी
चलो कहीं दूर जहाँ बस तुम हो और मैं हूँ
रखूंगी मैं तुम्हारे कांधे पर सर अपना
और तुम हौले से थाम लेना हाथ मेरा
देखना तब उन बहती हवाओं का मौन कहेगा
मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ
तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
हमदोनों एक दूसरें से कितना प्यार करते हैं!!
तुम्हें क्या लगता है नहीं जानती मैं
"मेरे बुद्धू"
सब जानती हूँ मैं कि मन में क्या है तुम्हारे
पर तुम ऐसे हो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है
क्योंकि, पुरूष भावनाओं को व्यक्त नहीं करता
क्योंकि वो मर्द है जिसे दर्द नहीं होता
ये तो समाज का सिखाया पाठ है
जिस वजह से तुम कह नहीं पाते
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!
कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो!!