बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
अजीब सी जिद थी उसकी
बात मानता ही न था दिल की
कर ही नहीं रहा था स्वीकार
उसकी ना को
देख ही ना रहा था अपनी उम्र को
उसे तो बस बुढ़ापे की सनक चढी थी
जा रहा था उधर
जिधर वो जा रही थी
कर रही थी अनदेखा
बहुत देर से वो
पर सब्र का बाँध उसका तब टूट गया
जब उसने उसे सबके सामने
आइ लव यूँ कहा
दबा गुस्से को सबकी नजरों का किया कुछ यूँ सामना
कहा मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ
अंकल आइ लव यू टू !!