वेलेन्टाइन डे लाईव
वेलेन्टाइन डे लाईव
प्रेमपंथ का नया नवेला पथिक प्रीतम
असमंजस में था,
प्रियतमा को प्रेम दिवस की
बधाई दे या न दे,
सोच रहा था ।
बधाई दे तो पिटने का डर,
ना दे तो रुठने का डर ।
इधर कुँआ,उधर खाई !
पश्चिम वालों ने ये क्या रीति चलाई ??
आखिर उसने जुगत लगाया
आटे वाले कनस्तर में,
लाल गुलाब छुपाया
और चल पड़ा एवरेस्ट फतह करने
नहीं-नहीं वेलेन्टाइन डे विश करने !
सड़कों में, पार्कों में, अजब नजारा था,
यहाँ-वहाँ -जहाँ-तहाँ
प्यार के पहरुए मुस्तैद थे,
जो साफ कवाब वाले हड्डी थे,
कोई हाथों में राखी,
तो कोई लाठी लिये खड़ा था ।
कोई शादी पर,
तो कोई उठक-बैठक पर अड़ा था ।
मीडिया थी, पुलिस थी, तमाशाई थे ।
सभी अपनी ड्यूटी बजा रहे थे ।
प्रीतम ने दो जोड़ो का अंजाम देखा,
दहेज, बैण्ड बाजा,
और बारात रहित ब्याह देखा ।
तीसरे जोड़े की हिम्मत दगा दे गई,
यहाँ राखी काम आई,
इसे मिली बहना, उसे मिला भाई ।
भाई लोगों ने दी बधाई !
पुलिस मुस्कराई !
तमाशबीनों ने तालियां बजाई ।।
मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज आई ।
दोहाई है, सरकार दोहाई है
पुरातन पंथियों ने खूब गजब ढाई है !
खैर प्रीतम अंततः पहुंचा वहां,
उसकी प्राणवल्लभा थी जहाँ,
उसने डोरबेल बजाई,
वह बाहर आई ।
उसे देख हौले से मुस्कराई !
प्रीतम ने गुलाब थमाया,
जरा सिर नवाया, फिर बोला-
जानूँ ! सारी !! मुझे देर हो गई !’
प्रीति पर्व की लो ढेरों बधाई !!
जानूँ बोली- हाँ ! सचमुच !! तुम्ह देर हो गई ।
आ मेरे भाई ! तुम्हें खिलाती हूँ,
भरपेट चाकलेट और मिठाई ।।
जानूँ की बातें, समझ ना आई ।
बोला- राम- राम ! जानूँ क्या गजब ढा रही हो ।
तबियत तो ठीक है ?
जो प्रीतम को भाई बना रही हो ?
वो बोली-सारी प्रीतम ! मैं क्या करती ?
वो पहले आया, जबरन बुके थमा गया !
मैं प्रीति के महापर्व का दस्तूर निभा गई
जिसने पहले गुलाब थमाया
उसी की हो गई ।
क्या अपने जीजू से नहीं मिलोगे !
क्या उन्हें बधाई भी नहीं दोगे ?
आश्चर्य के अतिरेक में डूबा प्रीतम,
जैसे अंगारों पर चलता भीतर गया ।
अपने प्रतिस्पर्धी को देख
सन्न रह गया ।
उस्ताद सोफे पर बैठा
चाकलेट खा रहा था,
उसे मुँह चिढ़ा रहा था ।।
प्रीतम को गुस्सा आया,
हिम्मत जुटाया, बोला –
उस्ताद ! तुम आदमी हो या कसाई ?
यार की दुनिया उजाड़ते शर्म नहीं आई
बरसों की दोस्ती का अच्छा सिला दिया !
अरे ! डायन भी सात घर छोड़ देती है,
तुमने दूसरा ही जला दिया !!
प्रीतम का हाल देख जानू उदास हुई,
उसे दी तसल्ली और हिम्मत बँधाई
बोली- प्रीतम ! जो हुआ सो हुआ !
अब आगे की फिक्र करो !
जरा जल्दी करो !
किसी पार्क, रेस्तरां या माल में जाओ ।
वहाँ आँखों की ठंडक,और दिल का सुकून पाओ ।
आज वेलेन्टाइन डे है, तुम्हें
कोई न कोई मिल जायेगी,
कोई तो होगी,जिसे 'प्रीतम' की तलाश होगी ?
प्रीतम ! मेरे भूतपूर्व प्रीतम !
मुझे भूल न जाना,
कभी संडे को लंच पर आना ।
हो सके तो
अपनी गर्लफ्रैंड भी साथ लाना !!
जानूँ मुस्कराई उस्ताद मुस्कराया ।
प्रीतम ने हाँ में सिर हिलाया,
और चल पड़ा, सुकून की आस में !
किसी अक्ल की अंधी की तलाश में ??