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Rajesh Kumar Shrivastava

Comedy

4  

Rajesh Kumar Shrivastava

Comedy

वेलेन्टाइन डे लाईव

वेलेन्टाइन डे लाईव

2 mins
400


   


प्रेमपंथ का नया नवेला पथिक प्रीतम 

असमंजस में था,

प्रियतमा को प्रेम दिवस की 

बधाई दे या न दे,

सोच रहा था ।

बधाई दे तो पिटने का डर,

ना दे तो रुठने का डर ।

इधर कुँआ,उधर खाई !

पश्चिम वालों ने ये क्या रीति चलाई ??

आखिर उसने जुगत लगाया

आटे वाले कनस्तर में, 

लाल गुलाब छुपाया 

और चल पड़ा एवरेस्ट फतह करने

नहीं-नहीं वेलेन्टाइन डे विश करने !


सड़कों में, पार्कों में, अजब नजारा था, 

यहाँ-वहाँ -जहाँ-तहाँ

प्यार के पहरुए मुस्तैद थे, 

जो साफ कवाब वाले हड्डी थे,


कोई हाथों में राखी, 

तो कोई लाठी लिये खड़ा था ।

कोई शादी पर, 

तो कोई उठक-बैठक पर अड़ा था ।


मीडिया थी, पुलिस थी, तमाशाई थे ।

सभी अपनी ड्यूटी बजा रहे थे ।

प्रीतम ने दो जोड़ो का अंजाम देखा,

दहेज, बैण्ड बाजा, 

और बारात रहित ब्याह देखा ।

  

तीसरे जोड़े की हिम्मत दगा दे गई,

यहाँ राखी काम आई,

इसे मिली बहना, उसे मिला भाई ।

भाई लोगों ने दी बधाई !

पुलिस मुस्कराई ! 

तमाशबीनों ने तालियां बजाई ।।

मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज आई ।

दोहाई है, सरकार दोहाई है

पुरातन पंथियों ने खूब गजब ढाई है !


खैर प्रीतम अंततः पहुंचा वहां, 

उसकी प्राणवल्लभा थी जहाँ,

उसने डोरबेल बजाई,

वह बाहर आई ।

उसे देख हौले से मुस्कराई !


प्रीतम ने गुलाब थमाया,

जरा सिर नवाया, फिर बोला-

जानूँ ! सारी !! मुझे देर हो गई !’ 

प्रीति पर्व की लो ढेरों बधाई !!


जानूँ बोली- हाँ ! सचमुच !! तुम्ह देर हो गई ।

आ मेरे भाई ! तुम्हें खिलाती हूँ,

भरपेट चाकलेट और मिठाई ।।


जानूँ की बातें, समझ ना आई ।

बोला- राम- राम ! जानूँ क्या गजब ढा रही हो ।

तबियत तो ठीक है ?

जो प्रीतम को भाई बना रही हो ?


वो बोली-सारी प्रीतम ! मैं क्या करती ?

वो पहले आया, जबरन बुके थमा गया !

मैं प्रीति के महापर्व का दस्तूर निभा गई 

जिसने पहले गुलाब थमाया

उसी की हो गई ।

क्या अपने जीजू से नहीं मिलोगे !

क्या उन्हें बधाई भी नहीं दोगे ? 


आश्चर्य के अतिरेक में डूबा प्रीतम,

जैसे अंगारों पर चलता भीतर गया । 

अपने प्रतिस्पर्धी को देख 

सन्न रह गया । 

उस्ताद सोफे पर बैठा

चाकलेट खा रहा था,

उसे मुँह चिढ़ा रहा था ।।


प्रीतम को गुस्सा आया, 

हिम्मत जुटाया, बोला –

उस्ताद ! तुम आदमी हो या कसाई ?

यार की दुनिया उजाड़ते शर्म नहीं आई 

 बरसों की दोस्ती का अच्छा सिला दिया !

अरे ! डायन भी सात घर छोड़ देती है,

तुमने दूसरा ही जला दिया !! 


प्रीतम का हाल देख जानू उदास हुई,

उसे दी तसल्ली और हिम्मत बँधाई

बोली- प्रीतम ! जो हुआ सो हुआ !

अब आगे की फिक्र करो !

जरा जल्दी करो !

किसी पार्क, रेस्तरां या माल में जाओ ।

वहाँ आँखों की ठंडक,और दिल का सुकून पाओ ।

आज वेलेन्टाइन डे है, तुम्हें 

कोई न कोई मिल जायेगी,

कोई तो होगी,जिसे 'प्रीतम' की तलाश होगी ?


प्रीतम ! मेरे भूतपूर्व प्रीतम !

मुझे भूल न जाना,

कभी संडे को लंच पर आना ।

हो सके तो

अपनी गर्लफ्रैंड भी साथ लाना !! 


जानूँ मुस्कराई उस्ताद मुस्कराया ।

प्रीतम ने हाँ में सिर हिलाया,

और चल पड़ा, सुकून की आस में !

 किसी अक्ल की अंधी की तलाश में ??



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