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Archana Saxena

Comedy

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Archana Saxena

Comedy

मेरी चाय की प्याली

मेरी चाय की प्याली

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इक ओर मेरी गरम रजाई थी और उसमें दुबकी सी मैं थी

तो दूजी ओर उठती हुई भाप मेज पर मुझको बुला रही


कुछ भीनी कुछ वह खुशबू कड़क नथुनों को महकाती जाती

कैसे खुद पर रक्खूँ काबू वह चाय बुलाती ही जाती


मैंने अपनी रजाई के भीतर खुद को था थोड़ा सिकोड़ लिया

खींचा कुछ ऐसे था उसको कि सिर से पाँव तक ओढ़ लिया


पर महक अब भी नहीं जाती वह मुझको बुलाती जाए है

इस रजाई को सरकाऊँ परे फिर बस मैं और मेरी चाय है


मैंने रजाई को फेंका परे,उठ गए कदम चाय की ओर

प्याले को चूमा होठों से अहा कितनी प्यारी लगे भोर


फिर देखा मुड़के रजाई को वह अब भी बुलाती थी मुझको

अहा कितना आकर्षण उसमें, इन्कार नहीं कोई मुझको


प्याले को थाम हाथों में मैं, बढ़ गई फिर बिस्तर की तरफ

मैं क्या करूँ इतनी सर्दी है मेरे हाथ-पाँव हुए जाते बर्फ।


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