STORYMIRROR

Archana Saxena

Comedy

4  

Archana Saxena

Comedy

मेरी चाय की प्याली

मेरी चाय की प्याली

1 min
264

इक ओर मेरी गरम रजाई थी और उसमें दुबकी सी मैं थी

तो दूजी ओर उठती हुई भाप मेज पर मुझको बुला रही


कुछ भीनी कुछ वह खुशबू कड़क नथुनों को महकाती जाती

कैसे खुद पर रक्खूँ काबू वह चाय बुलाती ही जाती


मैंने अपनी रजाई के भीतर खुद को था थोड़ा सिकोड़ लिया

खींचा कुछ ऐसे था उसको कि सिर से पाँव तक ओढ़ लिया


पर महक अब भी नहीं जाती वह मुझको बुलाती जाए है

इस रजाई को सरकाऊँ परे फिर बस मैं और मेरी चाय है


मैंने रजाई को फेंका परे,उठ गए कदम चाय की ओर

प्याले को चूमा होठों से अहा कितनी प्यारी लगे भोर


फिर देखा मुड़के रजाई को वह अब भी बुलाती थी मुझको

अहा कितना आकर्षण उसमें, इन्कार नहीं कोई मुझको


प्याले को थाम हाथों में मैं, बढ़ गई फिर बिस्तर की तरफ

मैं क्या करूँ इतनी सर्दी है मेरे हाथ-पाँव हुए जाते बर्फ।


સામગ્રીને રેટ આપો
લોગિન

Similar hindi poem from Comedy