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Archana Saxena

Abstract

4.5  

Archana Saxena

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सुहाना सूर्योदय

सुहाना सूर्योदय

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वह सूर्य की झाँकती पहली किरण

पूरब से उगी जैसे कोई मणि

अंबर ने धारण की हो ज्यों

मस्तक पर बिंदी प्रकाश जड़ी


नारंगी सूरज मनभावन

आकाश पे लाली बिखेर रहा

आया वह अपने अश्व पे चढ़

संग उसके अनगिनत हैं रश्मियाँ


सागर ने पाँव पखार इसे

स्वयं क्षितिज से भेजा अंबर में

इसने भी प्यार बरसाया है

क्या लाली छिटकी समुंदर में


ज्यों ज्यों ऊँचाई छूता यह

स्वर्णिम होता ही जाता है

दीवानी धरती तके इसे

उस पर भी सोना लुटाता है


पंछियों को भी है रवि से प्यार

सूर्योदय से ही इठलाने लगे

जब घर को अपने चला रवि

पंछी भी घर को जाने लगे


कल फिर आना मेरे प्यारे सूर्य

तुम प्राण हो अपनी धरती के

जब तक न तुम्हें निहार ले ये

अपने ही अंधेरों में सिमटी रहे।


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