"प्रेम राग"
"प्रेम राग"
वृंदावन की गलियों में रास,
रचाती राधा रानी,
दौड़े-दौड़े पीछे दौड़े
राधा प्यारे कृष्ण मुरारी
प्रेम रूपी रास में गूंजी,
बंसी की मधुर वाणी
प्रेम राग में रंग गए देखो!
मोहक राधा रानी,
पंख फैला कर नाच रहे
चारों ओर मयूर,
प्रेम का रोग ऐसा लगा
दीवानी हुई मीरा रानी
छूटा ना रोग कृष्ण का
ढह गया उसका सर्वे
श
विष पिलाया अमृत के जैसा
घूट घूट पी गई मतवाली
श्याम रंग की ओढ़ी चुनरी
जीत गई वो दुनिया सारी
प्रेम का रंग है ऐसा
लग जाए ना छूटे किसी से
तन मन धन से लूट जाए बावरे
फिर क्या! फिकर दुनियादारी की
प्रेम हो राधा मीरा जैसा
निस्वार्थ, ना अहंकारी
एक बार भक्ति में लिपटे
लीन हो गई दुनिया सारी।।