मेरा अस्तित्व
मेरा अस्तित्व
मैं कौन हूं ?
क्या स्वरूप है मेरा ?
क्या कल्पना है मेरी ?
समाज से क्यों डरती हूं ?
जबकि कोई व्यक्तित्व नहींं मेरा
कहने को तो बेशर्म बन जाऊ
जिस तरह समाज ने ललकारा है
मुझे,
तुम आज कहे तो चामुंडा बन जाऊं
बवंडर कर दु ये जहां,
मैं अहंकारी बन जाऊं जो सबके
लिए बनी हूं परंतु यह अहंकार
तो व्यक्तित्व नहींं है मेरा
फिर क्यों सब कह देते है,
आज मैं अहंकारी बन गई
मैं भी कोई पत्थर दिल नहीं
मेरी भी पुकार है दिल की
आशा रखती हूँ
कल्पना करती हुं दुनिया से परे
फिर क्यों सपने चकनाचूर करता है
ये जहां
क्यों जीने नहींं देता मुझे स्वतंत्र होकर
बस!
खवायीशे ही तो मेरी जिससे जी लिया ये
जहां
मैं जन्म लेती हूं क्योंकि ताकि खुशहाल
हो संसार सबका ये जीवन
मैं जन्म लेती हूं ताकि खिलखिलाता रहे
ये जहां
मैं जन्म लेती हुं क्योंकि मैं चाहती हूं संसार में आना
लोगो की खुशियां बनना,
उनको जीना सिखाना
फिर क्यों कसोटकर रख दिया
मुझे एक पल में ही मेरी आत्मा
मेरा शरीर क्या यही
मेरी परिभाषा है यही मेरे जीवन
की अभिलाषा है ?
जन्म होता है माता पिता के लिए
बोझ बन जाती हूं शादी होती है
ससुराल वालों के लिए बोझ बन जाती हूं
माता पिता बेटे के लिए मेरा गला
नोच देते हैं
ससुराल वाले दहेज के लिए
मेरी तो पहचान ही नहींं हुई कहीं
पुराणों में कहा जाता है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता परंतु क्यों आज ऐसा नहींं होता क्यों नारी शक्ति नहींं रही आज क्यों वह बुलंद हौसला
नहींं रहा उसका मैं बेटी भी बनती हूं बहन पत्नी मां भी कितने रिश्ते निभाती हूं फिर भी पहचान क्यों नहींं मेरी यहां समाज क्यों उंगली उठाता है हर जगह यहां क्या स्वतंत्रता मेरा अधिकार नहींं फिर क्यों बेड़ियों में जकड़ा है मुझे क्यों कैदी बना दिया चारदीवारी में क्यों वह चंद्रमा की चांदनी मुझ तक नहींं पहुंची ताकि मैं उससे स्वयं सवाल करूं
टूट गए सपने जो देखे थे
क्योंकि लड़की थी मैं
बिखर गए सपने सारे
क्योंकि लड़की थी मैं
इंतजार है उस पल का जिससे मुझे धिक्कार किया गया हो वही कहे कि समाज में इसी वजह से खुशियां है क्योंकि यह लड़कियां हैं देश प्रगति कर रहा है क्योंकि लड़कियां हैं यह सवाल उठता है मेरा बोलने से सवाल उठ जाता है मेरे खुले घूमने से क्यों वह नजर चली जाती है मुझ पर जब वस्त्र मनपसंद के पहनो क्यों उनका वश नहींं चलता उस गंदगी को धकेलने में जो मुझ पर अत्याचार करते हैं बेरहमी से पीटते हैं वह मुझे जिसके साथ जीवन व्यतीत करना चाहती हूं समाज की वीडियो में ऐसी जकड़ी हुई हूं जिससे छूट भी नहींं सकती कभी
मेरी परेशानी की वजह मेरे सितम की वजह बस मैं ही है क्योंकि मैं उसको भूल गई जो नारी शक्ति बनकर दुष्टों का संहार करती है मुझे वह पहचान चाहिए मेरी जिसको खो चुकी
मुझे पहचान चाहिए जिसको ढूंढ रही हूं मैं
मेरी पहचान लुटा दूं।