STORYMIRROR

akhilesh kumar

Tragedy

5  

akhilesh kumar

Tragedy

घर लौटती औरत

घर लौटती औरत

1 min
320

नौकरी कर 

घर लौटती औरत 

बेहद थकी होती है

उसके जिस्म के पोर पोर पर

वजन होता 

तमाम आड़ी टेढ़ी नजरों का

कपड़े बदलने से पहले

जिस्म से बीन कर 

फेंकनी पड़तीं ये नजरें

औरत के लिए

रोटी, सब्जी, बर्तन,सफाई....

रोज की हाड़ तोड़ मेहनत से

कहीं ज्यादा तकलीफदेह होतीं

जिस्म को टटोलतीं नजरें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy