सीता की अग्निपरीक्षा कब तक
सीता की अग्निपरीक्षा कब तक
ये प्रश्न मैं किससे पूछूँ अब
जो सदियों से मन में आयी है
विश्व पटल के घर - घर में
स्त्री पर, ये प्रश्नचिन्ह बन छायी है
न स्वतंत्र उसकी काया है
न स्वतंत्र उसकी छाया है
सहना है.. बस बिन बोले
अब तक तो मैंने .....
परतंत्रता में उसको पाया है
सतयुग, द्वापर जब बीत चुके
तब भूमिपुत्री का जनम हुआ
निकली हल के सीत शिखर से
त्रेता में कन्या का सीता नाम हुआ
जनकपुर की जनकनंदनी ने
बाल्यावस्था में चमत्कार दिखलाया था
शिव के प्राचीन धनुष को
खिलौने की तरह उठाया था
इस कारण से जनक ने स्वयंवर रचाया था
विष्णु रूप राम ने सीता को
अपने बाहुबल से पत्नी बनाया था
लक्ष्मी रूप सीता ने राम पर
अपना सब कुछ निछावर कर लुटाया था
जिसके सतीत्व से भय खाकर रावण डरा था
हरण तो कर लाया पर, उससे दूर खड़ा था
माया ने माया दिखाई, कर डाला विध्वंस
किया चूर उसका घमंड जो अपनी जिद्द पर अड़ा था
हनुमान, सुग्रीव, जामवंत और बहुत वानर थे
करी सहायता नारायण की देख सभी स्तब्ध थे
दशमुख धूल बना गिरा धरती पर राम-राम बस राम
सीता ने दी जब अग्निपरीक्षा देख सभी प्रसन्न थे
रामराज्य में सब खुश, वैभव ऐश्वर्य आया था
पर स्त्री के चरित्र पर धोबी ने प्रश्नचिन्ह लगाया था
राम के मर्यादित होने पर ये प्रजा ने प्रश्न उठाया
निर्दोष सीता को बिन बोले जंगल भिजवाया था
आज भी ऐसा हर जगह ये देखा जाता
स्त्री के कोरे चरित्र पर क्यों प्रश्न है लग जाता
न जाने कब तक देनी होगी सीता को अग्निपरीक्षा
कब? स्वतंत्र हो हर सोच - सोच में
स्त्री को अपना अस्तित्व मिल जाता
फिर खुली हवा में साँस ले हर सीता भी जी पाएगी।
