मैं और ईर्ष्या
मैं और ईर्ष्या
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के,
ईर्ष्या, तेरी भावना को
पल-पल हर बार
महसूस किया मैंने खुद में,
मैं जीती रही तुझे साथ लेकर,
मैं चलती रही तुझे साथ देकर,
कभी किसी बात पर
किया भाई से ईर्ष्या
तो.....
कभी किया माई से ईर्ष्या
रूप बदला बस मैंने तेरा
कभी खुद की खुदाई से ईर्ष्या।
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के....
वक्त बीतता गया सोचते-सोचते,
ज़ख्म भरता गया सहते-सहते,
तन्हा होकर भी साथ तेरा ही था
तभी तो,
अख्ज़ बनता गया करते-करते।
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के....
प्रतिबिंब को चूर-चूर किया,
खुद से ही खुद को दूर किया,
दिखावा झूठ को अपना समझा
फिर तुझे दिल में भरपूर किया।
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के....
कपड़े के हर टुकड़े पर किया
रंग.... और.....रूप पर किया,
किया जीवन की कमियों को लेकर
विकृत मानसिकता पर किया,
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के....
मैंने ईर्ष्या से भी ईर्ष्या किया,
मैंने खुद से भी ईर्ष्या किया,
किया जीवन के हर फैसले से
मैंने हर मजबूरी से ईर्ष्या किया।
मैंने ईर्ष्या किया जीभर के....