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Shikha Singh

Abstract

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Shikha Singh

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कठपुतलियां

कठपुतलियां

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दुनिया के इस रंगमंच पर

बन गए हम काठ की

रंग-बिरंगी कठपुतलियां

हर इशारे अलग-अगल है


हर नज़ारे अलग-अगल है

अलग-अगल हैं सोच यहां पर

हर सहारे अलग-अगल है

बन बैठे हैं सहजादे सब

पर....... 

काठ की पुतले बने हुए है

रंग-बिरंगी कठपुतलियां

सबके सपने अपने-अपने


छल-कपट से रचे हैं सबने 

ख्वाहिशों की कमी कहाँ हैं

टिमटिम-टिमटिमाते सपने

फिर.... 


खुशियां सबके आँखों में हैं

बन बैठे सब काठ की

रंग-बिरंगी कठपुतलियां।


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