हां ! स्त्री हूं में !
हां ! स्त्री हूं में !
हां ! स्त्री हूं मैं !
और !
स्त्री होना ही एक बड़ी
चुनौती है अपनेआप में !
चुनौती है समाज में खड़े रहने की !
चुनौती है भेड़ियों से बचे रहने की !
चुनौती है अपना चेहरा तलाशने की !
चुनौती है - अपनी उड़ान नापने की !
हां ! स्त्री हूं मैं !
इसीलिए,
सम्हालती हूं घर
चुराती हूं कुछ लम्हे
अपने लिए भी !
चुनती हूं चावल,
बुनती हूं सपने
हाथ चलते हैं बाहर और
भीतर चलती हूं मैं !
कभी गर्म तवे पर
सिकती रोटियों के बीच से
कुछ वक्त चुरा लेती हूं !
कभी गुपचुप ख्वाहिशों की
बारिश में नहा लेती हूं !
टुकड़ा-टुकड़ा खुद को
काटती हूं !
खुद को ऑफिस और
घर के बीच बांटती हूं !
हां !स्त्री हूं मैं !
बचपन से बुढापे तक,
संघर्ष का सफ़र करती हूं !
हर रोज़ मुश्किलों के भंवर में,
डूबती हूं,
फ़िर उबरती हूं !
याद है मुझे वो दिन भी
जब भाई रौंदता था वक्त,
तेज़ी से भागती मोटर साइकिल
के पहियों तले
तब बचाती थी मैं तिनका
तिनका समय
अपनी नींदें काटकर !
मुंह अंधेरे चुपके से जागकर !
हां ! स्त्री हूं मैं !
इसीलिए मालूम है मुझे
कि मर्यादाओं की ,
हज़ारों-हज़ार नजरें
मेरा पीछा करती हैं !
सी. सी. टी.वी . की तरह
हर घड़ी, हर पल
मुझ पर नज़र रखती हैं !
मगर स्त्री हूं मैं !
हर परीक्षा में खरी उतर जाऊंगी !
टुकड़ा - टुकड़ा बंटकर भी,
अपना वजूद सिद्ध कर जाऊंगी !