हाँ, समुद्र हूँ मैं
हाँ, समुद्र हूँ मैं
हाँ, समुद्र हूँ मैं
मेरा जल खारा जरूर है
मैं किसी का प्यास नहीं बुझा सकता हूँ
फिर भी नदियों का अंतिम
मंजिल हूँ मैं।
हाँ, समुद्र हूँ मैं
मुझमे निवास करते हैं
कई जलचर जीव
मेरे तट पर आनेवाले लोगों
को अक्सर कुछ दे दिया करता हूँ
क्योंकि देना ही जानता हूँ मैं।
हाँ, समुद्र हूँ मैं
लेकिन देता हूँ निश्वार्थ भाव से
चाहे आश्रय नदियों को देना हो
जलचरों को,अथवा मनुष्यों को
उनकी लायक चीजें
किसी से भी भेदभाव नहीं करता हूँ मैं।
हाँ, समुद्र हूँ मैं
काश ! तुम मनुष्य भी मुझसे
कुछ सीख पाते
निश्वार्थ भाव से इस
समाज को देना जानते
जिससे ईर्ष्या, कलह इस
समाज से मिट जाता और
फिर स्वर्ग भी भू पर आ जाता।
यही बात बार-बार मनुष्यों से
कहता हूँ मैं
हाँ, समुद्र हूँ मैं।