मेरे अल्फाज
मेरे अल्फाज
खुद को मिटाकर उन्हें
मुक्कमल कर दिया हमने
फिर क्यों, उनकी निगाहों
में बेवफा बन गए हम
कभी-कभी पूछती है मेरी तन्हाई
मुझसे यह सवाल....
गर इश्क गुनाह है, तो
गुनाहगार क्यों बन गए हम
माना कि ऐ जिंदगी....
मेरे मुकद्दर में इश्क नहीं
जाकर कह दो उनसे
रुसवा होकर यह आशिक
दिल कहीं लगाता नहीं।