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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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फूल से अच्छे कांटे

फूल से अच्छे कांटे

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फूल से अच्छे कांटे है,दामन थाम लेते है

अपनों से अच्छे गैर है,सामने जान लेते है

पर उनका भला क्या करे ज़माने में साखी,

सामने मीठे होते,पीछे छुरी से जान लेते है


जिसका भला किया,उसने ही दगा किया,

हर जगह,हर महफ़िल में बदनाम किया

दोस्तों से ज़्यादा दुश्मन बहुत नाम लेते है

फूल से अच्छे कांटे है,दामन थाम लेते है


हमने घर के आईने पर कालिख़ पोत दी,

अपने ही हाथों से हमने कलाई तोड़ ली,

टूटे हुए सुरों से हम सुरीली तान लेते है 

आजकल बहते आंसुओ से मुस्कान लेते है


अब हमने कोहिनूरी आईना तोड़ दिया है

आजकल टूटे शीशे से ख़ुद पहचान लेते हैं

फूल से अच्छे कांटे है,दामन थाम लेते हैं

सबसे अच्छे मित्र खुद है, खुद थाम लेते हैं।


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