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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

"दोगले इंसान"

"दोगले इंसान"

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खुद का तो पता नही,दूसरों को बांट रहे,ज्ञान
खुद चोर,दूजो को बोलते,पक्की रखो,जुबान
वाह रे,दोगले इंसानों,खुद का बेच रखा ईमान
ओर साखी को कह रहे,तलवार को रख म्यान
बेचारा बगुला भी हुआ है,उन्हें देखकर हैरान
तुम तो मेरे भी बाप हो,सुनो तुम दोगले इंसान
में बगुला तो पापी पेट के लिये करता हूं,स्वांग
तुम लोग बेमतलब लोगो को करते हो,परेशान
जितना चाहे उड़ लो रे,दोगलो अहम आसमान
आना पड़ेगा धरा पर,सच्चाई का यही फरमान
याद रखो सच्ची हो नही सकती,तुम्हारी मुस्कान
एकबार नकाब उतारो सही,तुम न दिखोगे,इंसान
कर लो भले कीचड़ होकर,तुम कमल का बखान
पर मीठा नही हो सकता कभी समुद्र जलपान
तुम मुंह मे राम,बगल में छुरी का रखते,स्थान
तुम कभी न बन सकते,दोगलों प्रकाश पहचान
जो घर शीशे के बने,दूजो पर क्या फेंकते पत्थर
बेजान
सच का फेंकेगा,कोई पत्थर,ढह जायेगा,उनका मकान
फिर रोओगे,पछताओगे,पर न मिलेगी,मुस्कान
बोया जिसने बबूल,उगा न सकता,आम उस स्थान
दोगले इंसानों से रहना तू सदा ही सावधान
ऐसे साँपों से ज्यादा विष रखते,भीतर स्थान
ऐसे खुद कुछ न करते,दूजों को बाँटतें रहते ज्ञान
खुद के बनाये,जाल में निकलती है,उनकी,जान
जीवन मे साखी यदि भरना चाहता,उन्नति उड़ान
दोगले इंसानों से ऐसे दूर रह,जैसे वो है,श्मशान
इनसे तो अच्छे पेड़-पौधे,पशु,पक्षी के ख़ानदान
कम से कम दूसरों को तो नही पहुंचाते,नुकसान
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"




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