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Bharat Bhushan Pathak

Drama

5.0  

Bharat Bhushan Pathak

Drama

मनमस्त फकीर

मनमस्त फकीर

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हाँ मनमस्त फकीर

हूँ मैं

निर्धन तो हूँ

वचन से

पर अमीर तो

हूँ ही मैं


हाँ मनमस्त फकीर

हूँ मैं

देख जमाने का

दर्द रोता

है मन मेरा

फटी जेब टटोलता

रहता हूँ


उस वक्त मैं

शायद भूख को

एक ही सही

रोटी दे

सकूँ कभी मैं

इसलिए जेब टटोलता


रहता हूँ

अपनी फटी जेब

सोचता है मनफकीर

मेरा शायद

उनका आबरू

जमाने से बचा


पाऊँ मैं

जो हमेशा रहती

है उनकी

आबरू को टैब

पर करूँ क्या ?


अब मैं

फटी हुई है

जेब मेरी

देखता रहता हूँ

कहीं दूर

बैठकर अमीरों की


अमीरी मैं

सोचता रहता हूँ

इनसे तो

अच्छी है मेरी

सहायता करने की

इच्छा लिए


मेरी फटी जेब

हाँ मनमस्त फकीर

हूँ मैं

लिए घूमता रहता

हूँ लिए अपनी

फटी जेब


समझने जमाने के

भरे हुए

जेबों की गरीबी

हाँ मनमस्त

फकीर हूँ मैं।


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