सीधी बात
सीधी बात
आज पहली बार व्यंग्यात्मक रचना उन निकम्मों के लिए जिन्हें स्वयं पर विश्वास ही नहीं रहा कि अपने बल पर ही कुछ किया जाए, तभी तो उन्हें दूसरी की आईडी०की आवश्यकता पड़ती है। कहीं बैठ ये गाल बजा रहे होंगे क्योंकि इन लोगों का फंडा ही है अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता...अमाँ यार, वित्तीय समस्या मेरी भी है, सच कहूँ तो हम सबकी है तो क्या करूँ दूसरे की आईडी०का उपयोग करूँ, शायद तुमको पता नहीं, तुम्हारी इस हरकत से असल में दुःखी प्राणी की सहायता नहीं हो पाती है, तो समर्पित है तुम लोगों को ऐसी रचनाएं:-
अरे ! आत्म से हीन मनुष्यों, अब विश्वास
जगाना है।
छोड़ो तुम ये गोरख धंधे, प्रेम-प्रसून उगाना है।।
माँ भारती के वीर सपूतों, पढ़ इतिहास कभी जाना।
हे भारतवंशी! बोल अभी, तुमने ये कैसे माना।।
हे मानव! आज बताना है, तपने से डरता तू क्यों ।
क्या ऊर्जा तुझमें शेष नहीं, दीप तेल बिन बूझे ज्यों।।
हे अंगुलिमाल यही पूछो, कौन साथ तुम्हारे हैं।
परिवारजनों या साथी में, तुम पे कितने वारे हैं।।
सूली तुम चढ़ जाओगे, बोलो कितने रोएंगे।
सोचना कुछ तुम्हें हो जाए, भूखे पेट वो सोएंगे।।
कोई भी नाम नहीं लेगा, पन्नों में रह जाओगे।
वो बच्चे तुमको ढूँढेंगे, तुम फिर कैसे आओगे।।