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Bharat Bhushan Pathak

Others

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Bharat Bhushan Pathak

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पूछ गयी वो जली हुई चूड़ियाँ..

पूछ गयी वो जली हुई चूड़ियाँ..

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फिर आज इस साल

हर साल की तरह

लिखना चाहती है कलम

मेरी वो दर्द की बूझी

हुई- सी कहानी

सुलगा कर मेरे मन के उस

अंधेरे कोने को ढूँढ ले आई

फिर...


वो मासूम की बिखरी,

हुई टूटी सी निशानी

मानो वो जली हुई,

चूड़ियों के कुछ बिखरे

हुए टुकड़े, चित्कार कर

आती कहती हो

मुझसे कि मुझे,

भूला दिया फिर तूने


हर उस पुराने वाले,

साल की ही तरह

माना मैंने जल गए ,

वो मुझे पहनने वाले

उस नारी के हाथ ,

ये भी माना उसे

इन्साफ़ भी दिलाया तुमने ,

पर माँ से उसके

पूछा जा क्या तुमने क्या ,

आखिरी साल की तरह

उसके लिए यह साल है,

या उसका साल बदहाल है

बेकार है .....


पूछ रहीं थी ..वो जली हुई

कान की बालियाँ मुझसे

तुम भी तो पुरूष हो न,

मैं क्या कहता मैंने हाँ कहा...

पर फिर उसने जो कहा ,

वो क्या सवाल था ..

झकझोर कर रख गयी थी,

वो मुझको पूरी ही तरह

पूछा जब उसने क्या अब

सुरक्षित रहेगी वो कलाईयाँ...



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