देवी नहीं बेटी हुई है
देवी नहीं बेटी हुई है
जन्म हुआ एक एक लड़की का आंगन में गूंजी किलकारी
पाकर इस खबर को एक ही स्वर में कहने लगी दुनिया सारी
बधाई हो, बधाई हो, घर में तुम्हारे देवी ने अवतार लिया है
उदास न होना भाई, लक्ष्मी ने ही इंसान का रूप धार लिया है
सुन समाज के इन वचनों को पिता का मन अपनी गाते खोल पड़ा
बधाई और सहानुभूति देने वाले लोगों से एक बेटी का पिता यह बोल पड़ा
मैं समाज से कुछ कहना चाहता हूँ, मेरा वचनों को ध्यान से सुनना तुम
अब तक अपने मन के भाव तुमने व्यक्त किए, अब मेरे भावों को समझना तुम
मेरे घर जगजननी नहीं, मेरी खुद की संतान आई है
देवी महामाया नहीं, मेरे घर एक नन्ही जान आई है
आठ भुजाएं नहीं, ध्यान से देखो इसके दो हाथ है
मेरे मन में और अपने तन से यह सदा मेरे साथ है
जैसा एक बेटा होता, वैसे ही होती एक बेटी है
ये न तो बोझ है, न देवी है, यह सिर्फ एक बेटी है
ये भी एक इंसान है, इसे देवी क्यों बना देते हो
जन्म होने से पहले ही मर्यादा की बेड़ियाँ क्यों पहना देते हो
मैं इसे मंदिर में पूजूँगा नहीं, अपनी गोद में बिठाऊँगा
सुबह शाम करूँगा आरती नहीं बल्कि अँगने में खिलाऊंगा
देवी
से तुलना न करो, इंसान है मेरी बेटी ये जान जाओ
बेटी- बेटी समान है नारों से नहीं, मन से मान जाओ
बोझ भी नहीं है मुझपर मेरी बेटी, ये भी समझाता हूँ
ये मेरी बेटी है, पूरी दुनिया को आज मैं बतलाता हूँ
कोई आर्थिक संकट नहीं है ये, बल्कि मेरे लिए जान से प्यारी ये सन्तान है
इस छोटी सी गुड़िया में बसी हुई मेरी जान है ।
देवी की उपमा देकर, आदर्श जन्म से पहले बता देते हो
बेटी को बोझ कहकर, जन्म से पहले निपटा देते हो
जवाब दो मुझे की क्या बेटी एक साधारण इंसान नहीं हो सकती ?
या तो देवी या बोझ, क्यों ये एक मामूली जान नहीं हो सकती ?
मैं बहुत खुश हूं कि मेरे घर बेटी आए है, इसे देवी न बनाओ तुम
देवी कहकर अभी से ही मर्यादा , इज़्ज़त, लाज की बेड़ियां न पहनाओ तुम
अपना जीवन ये खुलकर जीए, इसे समाज की कड़ियों में बाँधूँगा नहीं
पिता होने का धर्म निभाऊंगा, भक्ति से इसे नापूंगा नहीं ।
ना बेटी को बोझ कहो, न देवी कहो, इसे एक मानव की उपमा दो
मत पूजना तुम इसे बस मनुज होने की संज्ञा दो
आओ मिलकर करे एक नई मुहिम का आवाहन
बेटी को देवी न कहकर, कहे कि बेटा - बेटी एक समान