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Piyush Goel

Abstract Tragedy

4.5  

Piyush Goel

Abstract Tragedy

रोशनी में अंधेरा

रोशनी में अंधेरा

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मैं रोशनी घर में कैसे करूँ , दीये में तेल नहीं

मैं किसे दीवाली की दूं बधाई , मेरे घर में मेल नहीं

मैं मिठाइयाँ कैसे बाटूँ जब मैं खुद भूखा सो रहा हूँ

बच्चों को खुशियाँ कैसे दूं , मैं हर दिन खुद रो रहा हूँ


लक्ष्मी नहीं है मेरे घर , मैं लक्ष्मी की सेज कैसे बनाऊँ

अँधियारों में जीवन जी रहा , मैं लड़ियाँ कैसे लगाऊँ

जिसपर तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं , वो नए कपड़े कैसे खरीदेगा ?

खुशियों के मौके पर घर में मातम देख , कोई कैसे न खिजेगा


पटाखे फोड़ना तो दूर , मेरे लिए पटाखे

देखना बड़ी बात है

दौलत के दीवानों तुम क्या जानोगे की मेरे लिए अपने घर का अंधेरा झेलना बड़ी बात है

रोशनी से नहाया पूरा शहर पर मेरे घर एक बूंद भी न पड़ पाई

ये दीवाली भी इस गरीब की कुटिया में रोशनी कर न पाई


लोगो को सबसे अच्छा दिन लगता , मेरे लिए ये दिन सबसे बेकार है

किस्से कहूं , कैसे कहूं मेरे लिए तो फीका हर एक त्यौहार है

अगर फुर्सत मिले चकाचौंध देखने से तो अंधियारी झोपड़ी पर भी नज़र डाल लेना

मिठाइयाँ सड़ाने से मिल गई हो फुर्सत तो कुछ मिठाई उन्हें दे उन्हें भी निहाल कर देना



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