स्वमान की आहूति
स्वमान की आहूति
रात की सख़्त सलाखों के पीछे से
रोशनी ने उम्मीद की खिड़कियों से
टकटकी लगाए धीमे से सर उठाया
रिश्तों की पुरानी बेड़ियों से
जिन्दगी के पैरों के छालों पे
आज़ादी का मरहम लगाया
फटे पुराने लिबास से
पुराने किसी किस्से को
वक़्त के कफ़न में सजाया
भीगी सहमी इन आँखों ने
यादों की महफ़िलो को जला के
अतित की भस्म से आज को सजाया
सिलवटों के जंजाल में
समय के द्वन्द व्यापार में
मोहब्बत को लथपथ पाया
समझदारी की आड़ में
नासमझी की बहार में
खुद को दुविधा में पाया
बुद्धिमत्ता, धैर्य और ज्ञान से
हिम्मत साहस और सूझ से
मेरे आत्मा को प्रणाम किया
स्वमान की आहूति से
पलने वाले रिश्ते को
सरेआम मैंने निलाम किया।
