भूत की आत्मकथा
भूत की आत्मकथा
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हम भी स्वर्ग जाते थे अगर, ख़्वाहिशें ना रहती अधूरी
आज भी भटक रहे हैं, करने उन्हें पूरी||
लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं
शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं||
जन्म पर सुनी थी लोरी, मौत पर थी फुलकारी
अब ना रहे वो दोस्त, ना रही वो यारी||
याद आतें हैं कुछ लम्हे, और प्यार की बातें सारी
अब तो लगाने लगी है, ज़िन्दगी थी प्यारी||
पर तू क्यों उदास है, सुन कर मेरी कथा सारी
तेरी ज़िन्दगी की दौड़ अब भी है जारी,
ज़िन्दगी मैं कर मेहनत, आने दे मौत की बारी
होंगी ख़्वाहिशें पूरी तेरी, और मौत भी लगेगी प्यारी||