शुक्रिया
शुक्रिया
उस वक़्त का शुक्रिया जब तुमसे टकराए,
ये दो बेखबर रास्ते आखिर क्यों टकराए,
प्यासा मै भटका एक झील मिली,
अनजान सफ़र में एक उमीद मिली,
मैंने तो रास्ते जी लिए,
सुकून के दो पल अपने नाम कर लिए,
झुकी सी पलको में वो सब के गई,
मुझसे अनजाने में ना जाने वो कब क्या कह गई,
वो यूं मिलना बस इटफाक़ ना था,
अपना सा लगा वो जो पल भर का साथ था,
कोई समझौता ना था,
रिश्ता हद से ज्यादा पाक था,
अब ज़िंदगी में वो नहीं,
उनकी कोई खबर भी हम तक पहुंची नहीं,
यादें उनकी आज भी हमे चुभती है,
उनकी चिट्ठियां आज भी खुशबू सी महकती है,
जो अधूरा है चलो आज ख़तम कर देते हैं,
टकराने की हर वजह ख़तम कर देते है,
तुम भी दर्द कब तक सहोगे,
आखिर कब तक इस अनचाहे रिश्ते में बंधे रहोगे,
तुम्हारी ज़ुबान ने माना आज तक कुछ कहा नहीं,
पर घुट घुट के जीना भी सही नहीं,
अब ये बंधन सिर्फ बोझ है तुम्हारे लिए,
मैं सिर्फ एक भ्रम हूं तुम्हारे लिए,
मेरे लिए कोई जगह अब बची भी नहीं,
फिर मिलने की कोई आस भी बची नहीं,
जाने कैसे हमने खुद को संभाला है,
इस दिल को क्या कह कर संभाला है,
दो बातें कभी मेरी समझो,
कभी तो दर्द तुम अपना भी कह दो,
वो बीते पल कितने खास थे,
जिनमें तुम मेरे पास थे,
ज़बरदस्ती से कुछ हासिल नहीं होता,
बेरुखी से कोई रिश्ता नहीं टिकता,
ना जाने क्या है जो मुझे जाने नहीं देता,
एक एहसास है जो तुमसे दूर होने नहीं देता।