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Goldi Mishra

Drama Inspirational

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Goldi Mishra

Drama Inspirational

लिबास

लिबास

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लिबास 

दूर किसी अंगियारे में धागा आज भी पसरा दिखता है,
इन धागों पर चढ़ा रंग आज भी गहरा दिखता है,
आधा बना वो लिबास एक आस को पकड़े बैठा है,
रंगरेज भी मानो कोई नई कहानी कहना चाहता है,

करघे की सांसों में अब भी धीमे-धीमे संगीत है,
जैसे बुनाई के हर ताने में कोई अधूरा मीत है।
सूती रेशों की सरगोशियों में बसी है धूप की बात,
और हवा से झूलता कपड़ा पूछता है — “कब होगी शुरुआत?”

उस लिबास के छोरों पर सपनों की बेल उगी है,
हर सिलवट में छिपी किसी नारी की आंखें जगी हैं।
कुछ रंग अभी भी कटोरी में चुपचाप भीगते हैं,
जैसे बीते हुए मौसम फिर लौटने की ज़िद करते हैं।

टांकों की धारियाँ कहती हैं, "हर पीड़ा सिल जाती है,"
और रेशा-रेशा बोल उठता है — “यही तो ज़िंदगी की सच्चाई है।”
कभी मंदिर की घंटियों-सी थरथराती ओढ़नी बनूँगा,
कभी मेले में चटकती चुनरिया बन सजूँगा।

मैं लिबास हूं नए धागों को साथ लिए,
एक नई कहानी कह दूंगा,
मैं लिबास हूं बिन परिचय दिए,
मैं हर परिभाषा कह दूंगा,

– गोल्डी मिश्रा 





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