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Goldi Mishra

Drama Tragedy

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Goldi Mishra

Drama Tragedy

निशान

निशान

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निशान 
 
अंधेरी सी राहों पर वो देर तक भागता रहा,
न जाने कौन था पीछे बस बे सुध वो भटकता रहा,
 जरा ठहरता फिर साया किसी का दिखता,
 आंखों को मूंदे वो फिर चल देता, 
कुछ लिखना शुरू किया था, 
अब उस ख्याल से दूर खुद को कर लिया था,

 शाम ढलने को थी, 
वो अपनी रात की तलाश में था, 
आंखों में अजीब नमी थी, 
वो किसी कंधे की आस में था

टुकड़ों को जोड़ने में लगा,
वो हर निशान छुपा रहा था,
खुद की हकीकत को वो खोने लगा, 
न जाने किस शहर आ गया था,

सितार हाथों में थी उसके,
और वो धुन की तलाश में था,
हाथों पर निशान अजीब थे उसके,
मानों जंजीरों को तोड़ आया था,

दबे पांव फिर वो चलने को हुआ, 
जो आगे बढ़ा किसी ने रास्ता पूछने को रोक लिया,
 मुड़ कर देखा तो रास्ता नया हो चुका था,
 उसका लिबास भी अब पहले सा न रहा था,
 न जाने कब से भाग रहा था,
 खुद से या खुद के लिए भाग रहा था, 
अपनी ही खोज में था, 
किसी की ओर भाग रहा था,

– गोल्डी मिश्रा 



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