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Vishwa Priya

Abstract Drama Inspirational

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Vishwa Priya

Abstract Drama Inspirational

उसकी धुन...

उसकी धुन...

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आज सुबह खिड़की खोली तो ताज़ी हवा का एक झोंका छू कर अंदर आ गया। हवा की ठंडक से खुशी हुई पर दर्द के साथ। अजीब है न,

जब ताज़ी हवा आपको छुए पर आपको दर्द हो। असल में हमारे घर की बालकनी के सामने कुछ दूरी पर एक हॉस्पिटल है।

हमारा घर पाँचवीं मन्ज़िल पर है। उस हॉस्पिटल का ऊपरी माला और हमारे फ्लैट की बालकनी बिल्कुल बराबरी में है।


ये ताज़ी हवा भी तो वहीं से गुज़र कर आई होगी। हॉस्पिटल के ऊपर से सरकती हुई।

हॉस्पिटल के अंदर जो हो रहा होगा हम उसकी कल्पना मात्र से कांप जाते हैं। जो उसे झेल रहे हैं वो तो टूट चुके होंगे या तो टूटने वाले होंगे।

ख़ैर......

मैंने ये सब सोचने के बाद गौर किया कि हमारे घर और हॉस्पिटल के बीच जो आम के पेड़ हैं ना ,उनमें कई तरह की चिड़ियां बैठी हैं।

आम के पेड़ों में लदे हुए आम हवा के झोंको से हिल रहे हैं। चिड़ियों के कलरव से एक शोर हो रहा है। घर के पीछे एक छोटा सा मन्दिर है, वहां से घण्टियों की आवाज़ आ रही है। कुछ बच्चे जो शायद पास के छत पर खेल रहे हैं उनकी आवाज़ भी पंछियों के साथ मिल गयी है।

हाँ सिर को थोड़ा उठा कर देखने पर सफ़ेद बादल दिख रहे हैं। धीरे धीरे बहते ।कुछ कहना चाहते हैं शायद। ये धुन जो मुझे सुनाई देना चाह रही है पर मन है कि सुनना नहीं चाह रहा। ऊपर वाला खेल दिखा रहा है, हम उसे भूले जो बैठे हैं। ऊपरी तौर से जुड़ने को ही हम उसकी आराधना मान बैठे हैं । पर वो तो इन सब से ऊंचा है। आकाश की तरह अनंत ,मौसम की तरह बेपरवाह, बादल की तरह रूप बदलने वाला। उसे आडम्बर नहीं विश्वास चाहिए।


कुछ पंक्तियाँ कौंधी दिमाग में...


उकसाती है ज़िन्दगी

तड़पाती है ज़िन्दगी

सांसो की कीमत कुछ नहीं

हर पल ये बताती है ज़िन्दगी

या शायद सांसे हैं कोहिनूर

इसलिये है इठलाती ज़िन्दगी


वो बच्चा जिसने खो दिए मां बाप

वो मां-बाप जिन्होंने खो दिया अपना पूत

वो भाई जिसकी बहन हो गयी विदा

वो पत्नी जिसका पति चला गया, बिन कहे अलविदा

या वो पति जिसके साथ रह गया सिर्फ एक मासूम

जो सोच रहा है कि मां आएगी

 जो थी हफ्ते भर से जुदा


ये सभी लोग अपने कसूरों को छानते हैं ,बीनते हैं,

सोचते हैं ,हम ही क्यों

हमने क्या गुनाह किया था 

जीते हैं वो फिर भी लेकिन

और

सीख ही जाएंगे एक दिन जीना

क्योंकि आखिर में

 जीत जाएगी जिजीविषा।

लेकिन उस जिजीविषा को पाने 

और अपनों को खोने के बीच 

 जो समय है उसका क्या, 

वो तो हमारे सीने को चीरता है 

हमारी आत्मा को रौंदता है।

रात कटती नहीं,

दिन बीतता नहीं।

सो कर उठने पर लगता है 

 सपना है शायद

पर आंख खोलने पर रक्तमंज़र दिखता है

अपनों को खोने की सिहरन दौड़ती है शरीर में।

कुछ गलत हो रहा है

या फ़िर ये नियति है

बचने वाले बच जाते हैं

जाने वाले चले जाते हैं

नियति नहीं बदलती

हमारे आपके चाहने से 

ये सृष्टि तो चलती ही रहेगी न

उस अनंत शक्ति के सहारे

और हम कठपुतलियों की तरह

नाचते रहेंगे और सोचते रहेंगे

कब, कैसे, क्यों..

और वो मुस्कुराता रहेगा,

अपनी उंगलियों पर

हमें नचाता रहेगा

यूँ ही।

बादल और पक्षियों का संगीत सुना कर

हमें बहलाता रहेगा।

वो तारे असीमित

वो नक्षत्र चलायमान

वो प्रकाश वर्ष का साम्राज्य

चलता रहेगा, चलता रहेगा

और हम सोचते रहेंगे

कब कैसे क्यों?


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