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Vishwa Priya

Abstract Drama Inspirational

4.6  

Vishwa Priya

Abstract Drama Inspirational

मां

मां

1 min
99


लिखना है माँ पर भी कुछ 

लेकिन शब्द नहीं मिल रहे..


ये धरती एक पन्ना होती

नदी होती कलम 

पेड़ और फूल बन जाते शब्द

तो शायद लिख देती

एक कविता माँ पर भी


अपनी नींदों को गु़म कर

मुझे सुलाने वाली माँ

खु़द की भूख़ को नज़रअंदाज़ कर

मुझको खिलाने वाली माँ


सर्दियों में ऊनी रज़ाई की गर्माहट सी माँ

गरमियों में पानी की हल्की बौछार सी माँ

बारिश की बूंदों की टिपटिप के संगीत सी माँ


मेरे गंदे कपड़ों को धो और

तह लगा के खुश होने वाली माँ

मेरी तारीफ़ सुन मंद मंद मुस्कुराने वाली माँ

घर में पूजा की अगरबत्ती के धुंएँ सी माँ

संगीत की मधुर ध्वनि सी माँ


दिसंबर की हल्की धूप में भुनी

मूंगफली की खुशबु सी माँ

थोड़ी चटपटी

थोडी मीठी

जब कभी डाँटे तो लगती

तीखी मिर्ची सी माँ


मेरे चेहरे के लकीरों में बसती है माँ

मेरे हाथों के हुनर में पलती है माँ

मेरे आवाज़ की धुन में सुनाई देती है माँ

मेरे खून के क़तरे - क़तरे में दौड़ती है माँ


ये सूरज की रौशनी अगर वादा करे

 सुरों में गरमाहट लाने की

और आसमान अगर बन जाये लय

तो लिख दूं एक कविता माँ पर भी..


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